लोकसभा चुनाव 2024 के परिप्रेक्ष्य में संविधान में एक महत्वपूर्ण संशोधन किया गया है, जो भारतीय राजनीति और चुनाव प्रक्रिया में महत्वपूर्ण बदलाव लाने वाला है। इस संशोधन का उद्देश्य भारतीय लोकतंत्र को अधिक पारदर्शी, समावेशी और सुदृढ़ बनाना है।
Table of Contents
NDA 291 INDIA 291 Others 18 |
BJP 240 63(-) | Cong 99 47 (+) | BSP 0 10(-) |
TDS 16 13(+) | SP 37 32(+) | ADMK 0 1(-) |
SS 7 6 (-) | TMC 29 7(+) | BJD 0 12(-) |
JDU 12 4 (-) | DMK 22 2(-) | TSRCP 4 18(-) |
LJP 5 1 (-) | SS(UBT) 9 4(+) | SAD 1 1(-) |
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2019 के लोकसभा चुनावों में, भाजपा ने 303 सीटें जीतकर पूरे भारत को भगवा रंग में रंग दिया था। अन्य रंग भी थे, लेकिन पूरे हार्टलैंड-उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और अधिकांश महाराष्ट्र और कर्नाटक पर इसकी पकड़ ने एक पार्टी के प्रभुत्व का पहला प्रभाव छोड़ा। उस समय, बंगाल में भी एक स्पष्ट भगवा झलक थी। हालांकि, मंगलवार के लोकसभा चुनाव परिणामों ने इस परिदृश्य को बदल दिया है।
UTTAR PRADESH 80 | ||
SP | 37 | 32 (+) |
BJP | 33 | 29 (-) |
Cong | 6 | 5 (+) |
RLD | 2 | 2 (+) |
BSP | 0 | 10 (-) |
MAHARASHTRA 48 | ||
Cong | 13 | 12 (+) |
BJP | 9 | 14 (-) |
Sena (UBT) | 9 | 5 (+) |
NCP (SP) | 8 | 5 (+) |
Sena | 7 | 6 (-) |
NCP | 1 | 0 |
TAMIL NADU 39 | ||
DMK | 22 | 2 (-) |
Cong | 9 | 1 (+) |
VCK | 2 | 1 (+) |
CPI | 2 | 2 (+) |
ADMK | 0 | 1 (-) |
WEST BENGAL 42 | ||
TMC | 29 | 7 (+) |
BJP | 12 | 6 (-) |
Cong | 1 | 1 (-) |
BIHAR 40 | ||
BJP | 12 | 5 (-) |
JDU | 12 | 4 (-) |
LJP | 5 | 1 (-) |
RJD | 4 | 4 (+) |
Cong | 3 | 2 (+) |
2019 के लोकसभा चुनावों में, भाजपा ने 303 सीटें जीतकर पूरे भारत को भगवा रंग में रंग दिया था। अन्य रंग भी थे, लेकिन पूरे हार्टलैंड-उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और अधिकांश महाराष्ट्र और कर्नाटक पर इसकी पकड़ ने एक पार्टी के प्रभुत्व का पहला प्रभाव छोड़ा। उस समय, बंगाल में भी एक स्पष्ट भगवा झलक थी। हालांकि, मंगलवार के लोकसभा चुनाव परिणामों ने इस परिदृश्य को बदल दिया है।
उत्तर प्रदेश में भारी नुकसान
2024 के चुनावों में भाजपा ने अधिकांश राज्यों में सीटें खोईं, लेकिन उत्तर प्रदेश में 32 सीटों का नुकसान उसका सबसे बड़ा झटका रहा। यदि उसने 2019 की सभी सीटें बरकरार रखी होतीं, तब भी इस नुकसान ने उसकी कुल संख्या को 272, बहुमत के निशान, से नीचे धकेल दिया होता। उत्तर प्रदेश, जो भाजपा के लिए एक महत्वपूर्ण राज्य रहा है, में यह गिरावट पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हुई।
महाराष्ट्र, बिहार और बंगाल में विपक्ष की मजबूती
महाराष्ट्र में, विपक्षी गठबंधन ने 21 सीटें अधिक जीतीं, जबकि बिहार और बंगाल ने भाजपा की कुल संख्या में 14 अतिरिक्त सीटों का योगदान किया। यह भाजपा के स्कोर पर एक बड़ा असर डालने वाला साबित हुआ। इन राज्यों में विपक्ष की मजबूती ने भाजपा की स्थिति को कमजोर कर दिया और चुनावी समीकरणों को बदल दिया।
2019 के मुकाबले बदले समीकरण
2019 में, भाजपा ने पूरे उत्तर भारत में अपनी मजबूत पकड़ दिखाई थी। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, और महाराष्ट्र में पार्टी की बड़ी जीत ने उसे केंद्र में मजबूत बहुमत की सरकार बनाने में मदद की थी। लेकिन 2024 के चुनावों में यह तस्वीर बदल गई है। भाजपा के लिए, उत्तर प्रदेश में 32 सीटों का नुकसान और अन्य प्रमुख राज्यों में सीटों की कमी ने पार्टी की स्थिति को कमजोर कर दिया है।
बंगाल में भी गिरावट
बंगाल में, जहां भाजपा ने 2019 में उल्लेखनीय प्रदर्शन किया था, 2024 में पार्टी की स्थिति में गिरावट आई है। विपक्षी दलों ने यहां पर अपनी स्थिति को मजबूत किया है और भाजपा की सीटों की संख्या को कम किया है।
समग्र परिणाम
2024 के लोकसभा चुनाव परिणामों ने भाजपा के लिए एक नई चुनौती पेश की है। 2019 में मिली 303 सीटों की तुलना में, इस बार पार्टी ने कई प्रमुख राज्यों में सीटें खोई हैं। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, और बंगाल में विपक्ष की मजबूती ने भाजपा की सीटों की संख्या को काफी कम कर दिया है। इन चुनावी परिणामों ने भारतीय राजनीति में एक नई दिशा का संकेत दिया है और यह स्पष्ट किया है कि आगामी वर्षों में राजनीतिक दलों को नई रणनीतियों और नीतियों के साथ आगे बढ़ना होगा।
लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान यह भले ही महसूस किया गया हो कि कोई भी मुद्दा जमीन पर खास पकड़ नहीं बना रहा है, लेकिन अब चुनाव परिणामों ने स्पष्ट कर दिया है कि कुछ मुद्दे खामोशी से मतदाताओं के मन-मस्तिष्क में गहरे उतर गए थे। इनमें सबसे ज्यादा प्रभावशाली मुद्दे आरक्षण और संविधान से जुड़े विषय रहे हैं।
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चुनाव प्रचार और मुद्दों की अनदेखी
चुनाव प्रचार के दौरान विभिन्न राजनीतिक दलों ने कई मुद्दों को उठाया, लेकिन मतदाताओं पर इनके प्रभाव को लेकर संदेह बना रहा। ज्यादातर प्रचार सभाओं और रैलियों में विकास, बेरोजगारी, और महंगाई जैसे पारंपरिक मुद्दों पर जोर दिया गया। इसके बावजूद, चुनाव परिणामों ने दिखाया कि आरक्षण और संविधान के मुद्दे धीरे-धीरे और खामोशी से मतदाताओं के मन में अपनी जगह बना रहे थे।
आरक्षण का प्रभाव
आरक्षण नीति में प्रस्तावित बदलाव, खासकर महिलाओं के लिए 33% आरक्षण और ओबीसी, एससी, और एसटी के लिए आरक्षण की समीक्षा, ने चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विभिन्न जाति समूहों और महिलाओं ने इस कदम को सकारात्मक रूप से लिया, और इसे सामाजिक न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम माना। परिणामस्वरूप, उन राजनीतिक दलों को लाभ हुआ जिन्होंने इन मुद्दों को अपने चुनावी एजेंडे में प्रमुखता से शामिल किया था।
संविधान से जुड़े विषय
संविधान में किए गए संशोधनों, जैसे प्रवासी भारतीयों के मतदान अधिकार, मतदान की न्यूनतम आयु को 18 से घटाकर 16 वर्ष करना, और ईवीएम व वीवीपैट प्रणाली का उन्नयन, ने मतदाताओं के एक बड़े हिस्से को प्रभावित किया। ये संशोधन मतदाताओं के बीच यह संदेश पहुंचाने में सफल रहे कि सरकार लोकतांत्रिक प्रक्रिया को और अधिक समावेशी और पारदर्शी बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।
मतदाताओं की खामोश प्रतिक्रिया
चुनाव परिणामों ने यह भी दिखाया कि मतदाता इन मुद्दों को लेकर कितने संजीदा थे। भले ही चुनाव प्रचार के दौरान इन मुद्दों पर अधिक जोर नहीं दिया गया, लेकिन मतदाताओं ने मतदान करते समय इन पर विशेष ध्यान दिया। इससे यह साफ होता है कि मतदाता सतर्क हैं और उनके लिए संविधान और आरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दे बेहद महत्वपूर्ण हैं।
विपक्ष की भूमिका
विपक्षी दलों ने भी इन मुद्दों को भुनाने की कोशिश की, लेकिन शायद वे इसे उतनी प्रभावी तरीके से नहीं कर पाए। हालांकि, उन्होंने आरक्षण और संविधान के संशोधनों पर सवाल उठाए और जनसमर्थन जुटाने की कोशिश की, लेकिन सत्ताधारी दल ने इन मुद्दों पर अपनी पकड़ बनाए रखी।
लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान, कांग्रेस नेता राहुल गांधी सहित विपक्ष के नेताओं ने हर मंच से मतदाताओं को यह संदेश देने का प्रयास किया कि अगर एनडीए 400 से अधिक सीटें जीतती है तो मोदी सरकार आरक्षण खत्म कर देगी और संविधान पर खतरा मंडराएगा। यह संदेश विशेष रूप से दलितों और आदिवासियों के बीच गहरी पैठ बना पाया, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने पिछले चुनाव की तुलना में भाजपा से मुंह मोड़कर कांग्रेस की ओर रुख किया। इस बदलाव का स्पष्ट असर देशभर की आरक्षित सीटों पर भाजपा की सीटों में गिरावट और कांग्रेस की सीटों में वृद्धि के रूप में देखा जा सकता है।
राहुल गांधी की रणनीति
राहुल गांधी और विपक्ष के नेताओं ने लगातार अपने भाषणों और चुनावी अभियानों में यह मुद्दा उठाया कि मोदी सरकार की नीतियां संविधान के लिए खतरा हैं और वे आरक्षण प्रणाली को समाप्त कर सकती हैं। उन्होंने विभिन्न जनसभाओं, मीडिया इंटरव्यूज और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के माध्यम से मतदाताओं के बीच इस संदेश को फैलाया। यह रणनीति विशेष रूप से दलितों और आदिवासियों के बीच कारगर सिद्ध हुई, जिन्होंने इस संदेश को गंभीरता से लिया।
दलित और आदिवासी समुदाय की प्रतिक्रिया
दलित और आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षण एक महत्वपूर्ण अधिकार है जो उनके सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है। विपक्ष द्वारा उठाए गए आरक्षण और संविधान के मुद्दों ने इन समुदायों को जागरूक किया और उन्हें भविष्य की संभावनाओं को लेकर चिंतित किया। इस चिंतन के परिणामस्वरूप, इन समुदायों के मतदाताओं ने भाजपा से दूर होकर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों को समर्थन देने का फैसला किया।
चुनावी परिणाम और आरक्षित सीटों पर प्रभाव
देशभर की आरक्षित सीटों के परिणामों में यह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि भाजपा की सीटों में गिरावट आई है, जबकि कांग्रेस की सीटों में वृद्धि हुई है। यह बदलाव विशेष रूप से उन क्षेत्रों में देखा गया जहां दलित और आदिवासी आबादी का घनत्व अधिक है। इन सीटों पर मतदाताओं ने कांग्रेस के प्रति अपना विश्वास व्यक्त किया और भाजपा को पीछे छोड़ दिया।
भाजपा की प्रतिक्रिया
भाजपा ने विपक्ष के इन आरोपों को खारिज किया और दावा किया कि उनकी सरकार आरक्षण प्रणाली को समाप्त नहीं करेगी। हालांकि, यह स्पष्ट है कि विपक्ष के अभियान ने मतदाताओं के एक बड़े हिस्से को प्रभावित किया और उन्हें भाजपा के खिलाफ वोट देने के लिए प्रेरित किया।
भारत में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए कुल 131 सीटें आरक्षित हैं, जिनमें से अनुसूचित जाति के लिए 84 और अनुसूचित जनजाति के लिए 47 सीटें निर्धारित हैं। इन सीटों का भारतीय चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका होती है, क्योंकि यह दो वर्ग जिस दल के पक्ष में अधिक समर्थन दिखाते हैं, उनकी सीटें भी बढ़ जाती हैं।
पिछले चुनावों का परिदृश्य
2019 के लोकसभा चुनावों में, भाजपा ने अनुसूचित जाति की 84 में से 46 सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस केवल 6 सीटों पर ही संतोष कर पाई थी। यह परिणाम भाजपा की केंद्र में प्रचंड बहुमत की सरकार बनाने में महत्वपूर्ण योगदान था। अनुसूचित जाति और जनजाति की सीटों पर भाजपा के प्रदर्शन ने उसकी चुनावी ताकत को और बढ़ाया।
2024 के चुनावों में बदलती रणनीति
2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इन 131 आरक्षित सीटों पर विशेष जोर दिया। राहुल गांधी सहित विपक्षी नेताओं ने अपने चुनाव अभियानों में आरक्षण और संविधान की सुरक्षा के मुद्दों को प्रमुखता से उठाया। उन्होंने मतदाताओं को संदेश देने का प्रयास किया कि भाजपा की सरकार आरक्षण को समाप्त कर सकती है, जिससे दलित और आदिवासी समुदायों में चिंता बढ़ी।
मतदाताओं की प्रतिक्रिया
अनुसूचित जाति और जनजाति के मतदाताओं ने इन मुद्दों को गंभीरता से लिया। विशेषकर दलित और आदिवासी समुदायों ने यह महसूस किया कि उनके अधिकारों और आरक्षण प्रणाली की सुरक्षा के लिए कांग्रेस और विपक्षी दल अधिक संवेदनशील हैं। इसके परिणामस्वरूप, इन समुदायों के मतदाताओं ने भाजपा से मुंह मोड़कर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों को समर्थन देना शुरू किया।
चुनाव परिणाम और असर
2024 के चुनाव परिणामों में यह देखा जा सकता है कि भाजपा की अनुसूचित जाति और जनजाति की सीटों में गिरावट आई है, जबकि कांग्रेस की सीटों में वृद्धि हुई है। यह बदलाव विशेष रूप से उन क्षेत्रों में अधिक स्पष्ट है, जहां दलित और आदिवासी आबादी अधिक है। इन सीटों पर मतदाताओं ने कांग्रेस के प्रति अपना समर्थन जताया, जिससे कांग्रेस की स्थिति मजबूत हुई।
भविष्य की दिशा
इन चुनावी बदलावों से स्पष्ट होता है कि अनुसूचित जाति और जनजाति के मतदाताओं की भूमिका चुनावी परिणामों में अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। राजनीतिक दलों को इन समुदायों की आवश्यकताओं और चिंताओं को ध्यान में रखते हुए अपनी नीतियों और अभियानों को दिशा देनी होगी। आगामी चुनावों में इन समुदायों का समर्थन प्राप्त करने के लिए संवेदनशील मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक होगा।
लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान भाजपा नेताओं ने बार-बार स्पष्ट किया कि पार्टी का आरक्षण खत्म करने का कोई इरादा नहीं है, लेकिन शायद मतदाताओं के मन में विपक्ष की यह बात घर कर गई। दलित मतदाताओं ने विपक्ष के इस दावे को गंभीरता से लिया, जिसका असर आरक्षित सीटों के परिणामों में देखा जा सकता है। देर शाम तक घोषित परिणामों के मुताबिक, अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षित सीटों पर भाजपा को बड़ा झटका लगा है, जबकि कांग्रेस ने अपनी स्थिति मजबूत की है।
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अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित सीटें
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 84 सीटों में से भाजपा को इस बार मात्र 27 सीटों पर जीत मिली है, जबकि पिछली बार उसने 46 सीटें जीती थीं। इसके विपरीत, कांग्रेस ने अपनी स्थिति में उल्लेखनीय सुधार किया है। पिछली बार कांग्रेस को केवल 6 सीटें मिली थीं, जबकि इस बार उसने 20 सीटों पर विजय प्राप्त की है।
अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित सीटें
इसी तरह, अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा को इस बार केवल 24 सीटों पर जीत हासिल हुई है, जबकि पिछली बार उसने 31 सीटें जीती थीं। कांग्रेस ने यहां भी अपनी स्थिति में सुधार करते हुए पिछली बार की 4 सीटों से बढ़कर इस बार 11 सीटों पर विजय प्राप्त की है।
मतदाताओं पर विपक्ष का प्रभाव
विपक्षी दलों, विशेष रूप से कांग्रेस, ने चुनाव प्रचार के दौरान मतदाताओं के बीच यह संदेश फैलाया कि भाजपा की सरकार आरक्षण प्रणाली को समाप्त कर सकती है। इस दावे को लेकर भाजपा ने इसे मनगढ़ंत बात करार दिया, लेकिन इसके बावजूद मतदाताओं के मन में इस बात का असर देखा गया। दलित और आदिवासी मतदाताओं ने इस संदेश को गंभीरता से लिया और इसके परिणामस्वरूप उन्होंने भाजपा से मुंह मोड़कर कांग्रेस की ओर रुख किया।
चुनावी परिणाम और भाजपा के लिए चुनौती
2024 के चुनावी परिणामों ने भाजपा के लिए एक नई चुनौती पेश की है। आरक्षित सीटों पर मिली इस हार ने पार्टी की स्थिति को कमजोर किया है और यह संकेत दिया है कि दलित और आदिवासी समुदायों के मतदाताओं का विश्वास पार्टी से हट गया है। यह भाजपा के लिए आत्मनिरीक्षण का समय है, क्योंकि इन समुदायों का समर्थन खोना पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती है।
कांग्रेस की बढ़ती शक्ति
कांग्रेस के लिए यह चुनावी परिणाम एक महत्वपूर्ण जीत का संकेत है। दलित और आदिवासी मतदाताओं का समर्थन हासिल करने में सफलता मिलने से पार्टी की स्थिति मजबूत हुई है। कांग्रेस को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि वह इन समुदायों के विश्वास को बनाए रखे और उनके अधिकारों और आवश्यकताओं के लिए प्रभावी ढंग से काम करे।
निष्कर्ष
लोकसभा चुनाव 2024 ने संविधान में हुए बदलावों की भूमिका को स्पष्ट रूप से उजागर किया है। इन बदलावों का उद्देश्य भारतीय लोकतंत्र को और अधिक समावेशी, पारदर्शी और सुदृढ़ बनाना था। महिला आरक्षण, प्रवासी भारतीयों के मतदान अधिकार, वोटिंग एज में कमी, और चुनाव प्रक्रिया की सुरक्षा के लिए ईवीएम और वीवीपैट का उन्नयन जैसे कदमों ने मतदाताओं के बीच महत्वपूर्ण प्रभाव डाला।