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रथ यात्रा भारत के सबसे प्रसिद्ध त्योहारों में से एक है, जो भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की वार्षिक यात्रा का उत्सव मनाता है। यह यात्रा पुरी, ओडिशा में जगन्नाथ मंदिर से शुरू होती है और गुंडिचा मंदिर तक जाती है।

पुरी में भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा
पुरी में भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा

रथ यात्रा, जिसे चैरियट फेस्टिवल के नाम से भी जाना जाता है, ओडिशा के पुरी में बड़े धूमधाम और भक्ति के साथ मनाया जाने वाला एक प्राचीन और भव्य त्योहार है। भगवान जगन्नाथ को समर्पित यह वार्षिक आयोजन दुनियाभर से लाखों भक्तों और पर्यटकों को आकर्षित करता है। 2024 में रथ यात्रा और भी शानदार होने का वादा करती है, जिसमें जीवंत उत्सव, गहरा धार्मिक महत्व और अतुलनीय भक्ति का प्रदर्शन होगा।

                                                   Sourced by: Jai Shree Ram

रथ यात्रा, जिसे भगवान जगन्नाथ यात्रा के नाम से भी जाना जाता है, एक भव्य और पवित्र त्योहार है जो भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की वार्षिक यात्रा का उत्सव मनाता है। यह यात्रा हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को ओडिशा के पुरी में आयोजित की जाती है।

रथ यात्रा का महत्व:

  • भगवान का दर्शन: रथ यात्रा भक्तों को भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के दर्शन का अनमोल अवसर प्रदान करती है।
  • पापों का नाश: ऐसा माना जाता है कि इस यात्रा में शामिल होने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • सद्भाव का प्रतीक: रथ यात्रा सभी धर्मों और जातियों के लोगों को एक साथ लाती है और सद्भाव का प्रतीक है।

पुरी में रथ यात्रा:

  • 10 दिवसीय उत्सव: रथ यात्रा का यह पावन पर्व पूरे 10 दिनों तक धूमधाम से मनाया जाता है।
  • भव्य रथ यात्रा: भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को तीन विशाल और भव्य रथों में विराजमान कराया जाता है।
  • लाखों श्रद्धालुओं का समागम: रथ यात्रा को देखने के लिए लाखों श्रद्धालु दूर-दराज से पुरी आते हैं।

रथ यात्रा का इतिहास सदियों पुराना है, जिसके मूल हिंदू पौराणिक कथाओं और परंपराओं में गहराई से निहित हैं। यह त्योहार भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक वार्षिक यात्रा का स्मरण कराता है। यह यात्रा देवताओं के उनके जन्मस्थान की यात्रा का प्रतीक है, जो पुनर्जीवन और नवीनीकरण की अवधि को दर्शाती है।

उत्सव की तैयारियाँ

रथ यात्रा की तैयारियाँ हफ्तों पहले शुरू हो जाती हैं, जिसमें देवताओं को ले जाने वाले तीन विशाल रथों का निर्माण शामिल होता है। इन रथों को नंदिघोष (भगवान जगन्नाथ के लिए), तालध्वज (भगवान बलभद्र के लिए), और दर्पदलन (देवी सुभद्रा के लिए) के नाम से जाना जाता है, जो जीवंत रंगों, फूलों और पारंपरिक आकृतियों से सजी होती हैं।

रथ यात्रा के दिन, पुरी शहर भक्तों के समुद्र में बदल जाता है, जो देवताओं की एक झलक पाने और रथ खींचने की रस्म में भाग लेने के लिए उत्सुक होते हैं। मुख्य कार्यक्रम जगन्नाथ मंदिर के गर्भगृह से देवताओं की रथों तक औपचारिक शोभायात्रा के साथ शुरू होता है। इसके बाद पुरी की सड़कों पर मंत्रोच्चार, भजनों और ढोल की धड़कनों के बीच रथ खींचने का भव्य दृश्य होता है।

धार्मिक महत्व

रथ यात्रा हिंदुओं के लिए गहरा धार्मिक महत्व रखती है। ऐसा माना जाता है कि रथ खींचने की रस्म में भाग लेने या रथों पर देवताओं को देखने से पापों का नाश होता है और आशीर्वाद मिलता है। यह त्योहार एकता और समानता की अवधारणा का भी प्रतिनिधित्व करता है, क्योंकि सभी वर्गों के लोग भगवान जगन्नाथ का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए एक साथ आते हैं।

गुंडिचा मंदिर की यात्रा

रथ लगभग 3 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए गुंडिचा मंदिर पहुंचते हैं, जहां देवता नौ दिनों तक रहते हैं। इस अवधि को गुंडिचा यात्रा या गुंडिचा में ठहराव के नाम से जाना जाता है। वापसी यात्रा, जिसे बहुड़ा यात्रा के नाम से जाना जाता है, उतनी ही महत्वपूर्ण होती है और प्रारंभिक यात्रा की तरह ही उत्सव के साथ मनाई जाती है।

पुरी में आयोजित होने वाली जगन्नाथ रथ यात्रा, ओडिशा का एक महत्वपूर्ण धार्मिक उत्सव है, जो भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की वार्षिक यात्रा को दर्शाता है। इस महान उत्सव से पहले, एक अद्वितीय और रहस्यमय परंपरा है जिसमें भगवान जगन्नाथ को 15 दिनों के लिए “बुखार” में रखा जाता है। इस परंपरा को “अनासरा” या “अनवसर” कहा जाता है। इस लेख में, हम इस परंपरा के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व की चर्चा करेंगे।

अनासरा, जिसे “अनवसर” भी कहा जाता है, का अर्थ है “अप्राप्य अवधि”। यह अवधि देवस्नान पूर्णिमा के दिन से शुरू होती है, जो रथ यात्रा से पहले की पूर्णिमा है, और इसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को मुख्य मंदिर से बाहर एक विशेष स्थान में रखा जाता है। इस दौरान, वे सार्वजनिक दर्शन के लिए उपलब्ध नहीं होते।

धार्मिक महत्व

अनासरा अवधि का धार्मिक महत्व गहरा और पवित्र है। ऐसा माना जाता है कि देवस्नान पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को पवित्र स्नान कराया जाता है, जिसके बाद वे बुखार से पीड़ित हो जाते हैं। इस अवधि के दौरान, देवताओं को विश्राम और पुनरुत्थान की आवश्यकता होती है। उन्हें विशेष औषधियों, जड़ी-बूटियों और पवित्र जल के साथ ठीक किया जाता है।

यह भी माना जाता है कि इस अवधि के दौरान भगवान जगन्नाथ अपने भक्तों को यह संदेश देते हैं कि देवता भी मानवीय गुणों और कमजोरियों के साथ होते हैं। यह भक्तों को अपने जीवन में सहनशीलता और धैर्य की महत्ता को समझने का अवसर प्रदान करता है।

सांस्कृतिक दृष्टिकोण

अनासरा की परंपरा का सांस्कृतिक महत्व भी है। इस अवधि के दौरान, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को “अनासरा पथी” नामक विशेष कमरे में रखा जाता है, जहां केवल मंदिर के पुजारी ही प्रवेश कर सकते हैं। इस अवधि में भक्तों को भगवान के चित्र और प्रतीकात्मक रूपों की पूजा करने का निर्देश दिया जाता है।

अनासरा के समय, भगवान जगन्नाथ को विशेष प्रकार के पौष्टिक भोजन, जड़ी-बूटियों और औषधियों का सेवन कराया जाता है, जिसे “फाला” कहा जाता है। यह भोजन देवताओं के स्वास्थ्य के लिए तैयार किया जाता है और इसे भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।

रथ यात्रा 2024: क्या अपेक्षा करें

2024 में, रथ यात्रा एक भव्य आयोजन होने की उम्मीद है, जिसमें भक्तों की सुविधा और सुरक्षा के लिए बेहतर व्यवस्था की जाएगी। राज्य सरकार और विभिन्न संगठन त्योहार के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करेंगे, बड़ी संख्या में आगंतुकों का प्रबंधन करेंगे और सभी के लिए एक आध्यात्मिक रूप से समृद्ध अनुभव सुनिश्चित करेंगे।

पुरी में रथ यात्रा सिर्फ एक त्योहार नहीं है; यह एक गहरी आध्यात्मिक यात्रा है जो भक्ति, एकता और हिंदू संस्कृति की शाश्वत परंपराओं के साथ प्रतिध्वनित होती है। जैसे-जैसे 2024 के उत्सव की तैयारियाँ शुरू होती हैं, भक्तों के बीच प्रत्याशा और उत्साह बढ़ता जा रहा है, जो विश्वास और विरासत के एक सचमुच भव्य उत्सव का वादा करता है।

करियर:

  • इस सप्ताह मेष राशि वालों को करियर में कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
  • आपको काम पर अधिक ध्यान केंद्रित करने और अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने की आवश्यकता होगी।
  • धैर्य बनाए रखें और सकारात्मक दृष्टिकोण रखें।
  • मेहनत और लगन से आप इन चुनौतियों को पार कर सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

वित्त:

  • इस सप्ताह वित्तीय मामलों में सावधानी बरतने की आवश्यकता है।
  • अनावश्यक खर्च करने से बचें और बजट बनाकर चलें।
  • निवेश करने से पहले अच्छी तरह से सोच-विचार करें।

स्वास्थ्य:

  • इस सप्ताह स्वास्थ्य का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है।
  • पर्याप्त नींद लें और स्वस्थ भोजन करें।
  • नियमित व्यायाम करें और तनाव से बचें।

रिश्ते:

  • इस सप्ताह पारिवारिक और रोमांटिक रिश्तों में कुछ तनाव हो सकता है।
  • अपने प्रियजनों के साथ धैर्य रखें और उनकी बातों को सुनें।
  • गलतफहमी से बचने के लिए स्पष्ट संवाद करें।

भावनात्मक स्थिति:

  • इस सप्ताह आप अधिक भावुक महसूस कर सकते हैं।
  • अपनी भावनाओं को नियंत्रित करें और नकारात्मक विचारों से बचें।
  • ध्यान और योग करें शांत रहने में मदद कर सकते हैं।

उपाय:

  • इस सप्ताह हनुमान जी की पूजा करें और लाल रंग की वस्तुएं दान करें।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह केवल एक सामान्य राशिफल है और आपकी व्यक्तिगत कुंडली के आधार पर भिन्न हो सकता है। अधिक सटीक भविष्यवाणी के लिए, आप किसी ज्योतिषी से सलाह ले सकते हैं।

रथ यात्रा क्यों निकाली जाती है?
रथ यात्रा क्यों निकाली जाती है?

रथ यात्रा, जिसे जगन्नाथ यात्रा के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की वार्षिक यात्रा का उत्सव मनाता है।

रथ यात्रा के पीछे कई धार्मिक और पौराणिक कथाएं हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:

  • भगवान का दर्शन: माना जाता है कि रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए पुरी से निकलते हैं।
  • गुंडिचा मंदिर यात्रा: भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा पुरी से निकलकर गुंडिचा मंदिर जाते हैं, जो उनकी मौसी देवी इंदिरा की कोठी है।
  • कृष्ण की रुकमणि विवाह: कुछ मान्यताओं के अनुसार, रथ यात्रा भगवान कृष्ण के रुकमणि विवाह का प्रतीक है।
  • जगन्नाथ का समुद्र दर्शन: यह भी माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ समुद्र दर्शन के लिए निकलते हैं।
  • पापों का नाश: ऐसा विश्वास है कि रथ यात्रा में शामिल होने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • सद्भाव का प्रतीक: रथ यात्रा सभी धर्मों और जातियों के लोगों को एक साथ लाती है और सद्भाव का प्रतीक है।

 

                                                      Sourced by: News Nation

पुरी के जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलभद्र (बलराम) और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान हैं। रथ यात्रा के दौरान तीनों भाई-बहन की प्रतिमाओं को रथ में बैठाकर नगर भ्रमण कराया जाता है।कहते हैं कि भगवान जगन्नाथ के रथ को खींचने वाले को 100 यज्ञ कराने के बराबर शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

                                                  Sourced by: Webdunia Hindi

 

जगन्नाथ रथ यात्रा, 7 जुलाई 2024 को निकाली जाएगी।

आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया:

  • प्रारंभ: 7 जुलाई 2024 (शुक्रवार), सुबह 4:26 बजे
  • समापन: 8 जुलाई 2024 (शनिवार), सुबह 4:59 बजे

रथ यात्रा का समय:

  • प्रथम निकास: 7 जुलाई 2024 (शुक्रवार), सुबह 8:05 बजे से 9:27 बजे तक
  • द्वितीय निकास: 7 जुलाई 2024 (शुक्रवार), दोपहर 12:15 बजे से 1:37 बजे तक
  • तृतीय निकास: 7 जुलाई 2024 (शुक्रवार), शाम 4:39 बजे से 6:01 बजे तक

पुरी, ओडिशा में स्थित जगन्नाथ मंदिर, हिंदू धर्म के सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है। भगवान जगन्नाथ, जो भगवान विष्णु के एक रूप माने जाते हैं, का यह दिव्य निवास अपनी भव्यता, आस्था और प्राचीन परंपराओं के लिए विश्व प्रसिद्ध है। इस मंदिर में हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं, जो भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के दर्शन करने और आशीर्वाद प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं।

                                       Sourced by: Traveling Something Different

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

जगन्नाथ मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव द्वारा करवाया गया था। हालांकि, मंदिर की स्थापना और भगवान जगन्नाथ की पूजा की परंपरा इससे भी प्राचीन है, जिसकी जड़ें वैदिक काल तक जाती हैं। मंदिर की वास्तुकला, अपने भव्य शिखर, जटिल नक्काशी और विशाल परिसर के साथ, ओडिशा की कलिंग शैली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

धार्मिक महत्व

जगन्नाथ मंदिर हिंदू धर्म में चार धामों में से एक है, जिसका दौरा हर हिंदू के जीवनकाल में कम से कम एक बार करना शुभ माना जाता है। भगवान जगन्नाथ, जो “संसार के भगवान” कहलाते हैं, यहां मुख्य देवता के रूप में पूजे जाते हैं। मंदिर का मुख्य आकर्षण यहां की रथ यात्रा है, जो भगवान जगन्नाथ की वार्षिक यात्रा को दर्शाती है। इस समय मंदिर और शहर एक जीवंत उत्सव में बदल जाते हैं, जिसमें लाखों भक्त शामिल होते हैं।

मंदिर की अनूठी विशेषताएँ

जगन्नाथ मंदिर की कई अनूठी विशेषताएँ हैं जो इसे अन्य मंदिरों से अलग करती हैं। यहां भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियाँ लकड़ी से बनी होती हैं, जिन्हें हर 12 से 19 साल में एक विशेष अनुष्ठान के तहत बदला जाता है, जिसे “नवकलेवर” कहा जाता है। इसके अलावा, मंदिर की रसोई, जिसे “महाप्रसाद” कहा जाता है, दुनिया की सबसे बड़ी रसोई में से एक है, जहां प्रतिदिन हजारों भक्तों के लिए प्रसाद तैयार किया जाता है।

वास्तुकला और संरचना

जगन्नाथ मंदिर की वास्तुकला अद्वितीय और विस्मयकारी है। मंदिर का मुख्य शिखर लगभग 65 मीटर ऊंचा है और इसके ऊपर भगवान विष्णु का प्रतीक चक्र सुदर्शन रखा गया है। मंदिर परिसर में कई छोटे-बड़े मंदिर और मंडप हैं, जो अपनी जटिल नक्काशी और मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध हैं। मुख्य मंदिर के चारों ओर चार द्वार हैं, जिन्हें सिंह द्वार, अश्व द्वार, हाथी द्वार और व्याघ्र द्वार के नाम से जाना जाता है।

सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव

जगन्नाथ मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि ओडिशा की सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का एक अभिन्न हिस्सा भी है। यहां के त्योहार, अनुष्ठान और परंपराएँ स्थानीय संस्कृति और जीवनशैली को गहराई से प्रभावित करते हैं। मंदिर का प्रशासन भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो यहां के दैनिक गतिविधियों और वार्षिक समारोहों का प्रबंधन करता है।

जगन्नाथ मंदिर एक दिव्य निवास है, जो अपनी भव्यता, आस्था और परंपराओं के माध्यम से भक्तों को आकर्षित करता है। यह मंदिर न केवल एक धार्मिक केंद्र है, बल्कि ओडिशा की संस्कृति और इतिहास का एक जीवंत प्रतीक भी है। भगवान जगन्नाथ के इस पवित्र धाम की यात्रा हर भक्त के जीवन में एक महत्वपूर्ण और आध्यात्मिक अनुभव होती है।

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